आजादी के मायने तब तक समझ नहीं आते जब तक की आप उससे महशुश न करें. ये कुछ इस तरह होगा की आपके हाथ पाँव तो हैं लेकिन इन्हें बांध के कहा जाये की चलो दौड़ो। या आपको किसी ऐसे स्थान पर भेज दिया जाए जहाँ सभी तरह की सुविधाएँ हों लेकिन आप वह कुछ भी करने के लिए किसी की इज़्ज़ाजत के मोहताज़ हों. तो क्या हमें वे सारी सुविधाएं अच्छी लगेंगी, मेरे ख्याल से आपका भी जबाब मेरी तरह ही ” ना ” होगा।
आज़ादी से बड़ी कोई सुविधा और कोई उपहार नहीं हो सकता। पराधीन इंसान उस जानवर की तरह है जो अपनी स्वेक्च्छा से कुछ कदम चल भी नहीं सकता जो एक खूँटे से बंधा है। हम भारतीय भी लगभग 200 सालों तक अंग्रेजी हुकूमत के गुलाम और उनके खूटे से बधे किसी जानवर के जैसे ही थे. इससे भी ज्यादा शर्म की ये बात थी की हम अपनी धरती पर ही दुसरो के गुलाम थे.
खैर बहुत संघर्ष और कठिन परिश्रम के बाद 15 अगस्त 1947 को खुली हवा में साँस लेने का मौका मिला। आजादी के बाद समस्या दूसरी थी, अंग्रेज हमें शारीरिक ही नहीं मानसिक गुलाम भी बना चुके थे. शारीरिक गुलामी और आजादी तो खुली आँखो से दिखाई देने वाली प्रक्रिया है. परन्तु मानसिक गुलामी तो उससे भी खतरनाक है.
क्यों की मांसक गुलाम को तो पताही नहीं चलत की वो वास्तव में गुलाम है. आज के समय में डिप्रेसन नमक बीमारी भी कुछ इसी तरह की मानसिक परेशानी है जिसमे मरीज को पता ही नहीं चलता की वो वास्तव में बीमार है ?…. खैर आज के समय में इसके लिए जाँच और एक ईलाज की प्रक्रिया मौजूद है. पर हम आज से ७५ साल पहले की बात कर रहे है।
अंग्रेजों ने हमारे सोने की चिड़िया कहे जाने वाले देश को पूरी तरह से खोखला कर दिया था। और जब आज हम आज़ादी की 75वीं वर्षगाँठ ” आजादी का अमृत महोत्सव” मना रहे हैं तो इस बात पर विचार करना आवश्यक हो जाता है कि इन 75 सालों में हम कहाँ पहुँचे और क्या उपलब्धियाँ हासिल की?
तो चलिये हम सब के द्वारा हासिल की गयी कुछ उप्लाभ्दियो के बारे में जानते हैं.
भुखमरी से खाद्य निर्यातक बनने का सफर।
अंग्रेजों ने एक सोची समझी लापरवाही के कारण कृषि व्यवस्था को इस हाल में पहुँचा दिया था कि, आज़ादी के समय देश के पास न तो पर्याप्त अनाज था और न ही अनाज उत्पादन के लिये आधारभूत सुविधाएँ। साल 1950-51 में केवल लगभग 5 करोड़ टन खाद्यान्न का उत्पादन ही होता था जो कि देश की 35 करोड़ ( उस समय की ) जनसंख्या का पेट भरने के लिये भी पर्याप्त नहीं था।
स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज़ादी के 15 साल बाद 1962 में हमारे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को देश की जनता से एक वक्त उपवास रखने की अपील करनी पड़ी थी। उन्होंने अपने आह्वान में कहा था ‘पेट पर रस्सी बाँधो, साग-सब्जी ज़्यादा खाओ, सप्ताह में एक दिन एक वक्त उपवास करो, देश को अपना मान दो।’
इस स्थिति से बहार आना बहुत जरुरी था, क्यों की जो जनता और सेना भूखी होगी वो देश के अंदर या सीमान्तर समस्याओ पर कितना ध्यान देगी। फिरभी १९६२ से पहले छोटे छोटे कई मोर्चो पर हम लड़ते रहे. अब खाद्यान की कमी से जल्द से जल्द निपटने के लिये भारतीय राजनेताओं ने भूमि सुधार, सिंचाई सुविधाओं का विस्तार, कृषि में वैज्ञानिक विधियों व अनुसंधान को बढ़ावा देने और हरित क्रांति समेत कई बड़े कदम उठाने पर जोर दिया गया और इस पर कार्य किया गया।
समय के साथ-साथ नई-नई प्रौद्योगिकी व मशीनों के इस्तेमाल से अनाज का उत्पादन बढ़ाने में सहायता मिली। नतीजा यह हुआ कि आज भारत न सिर्फ अपनी समूची जनसंख्या को खाद्यान्न उपलब्ध करवाता है बल्कि कृषि उत्पादों का निर्यात भी करता है। वर्तमान में भारत खाद्य उत्पादन के मामले में दुनिया में दूसरे स्थान पर है।
धरती से चांद तक तिरंगा
भारत में आधुनिक अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक डॉक्टर विक्रम साराभाई को माना जाता है। उन्होंने 15 अगस्त 1969 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन “जिसे हम सभी इसरो के नाम से जानते हैं “(ISRO) की स्थापना की और जल्द ही उसे नई ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया। देश का पहला उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ था जिसे 19 अप्रैल 1975 को सोवियत संघ द्वारा अंतरिक्ष में छोड़ा गया था। पहले उपग्रह के सफलतापूर्वक प्रक्षेपित होने के बाद भारत ने एक के बाद एक कीर्तिमान स्थापित करने शुरू किए। 7 जून 1979 को भारत का दूसरा उपग्रह ‘भास्कर’ पृथ्वी की कक्षा में भी स्थापित कर दिया था।
अभी तो ये शुरुआत मात्र थी, इसके अलावा 22 अक्टूबर 2008 को इसरो द्वारा चंद्रयान-1 भेजा गया जो 14 नवंबर 2008 को चंद्रमा की धरती पर पहुँचा। चंद्रयान-1 ने चाँद पर भारतीय तिरंगा लहरा कर इतिहास रच दिया और चंद्रमा पर अपना झंडा लगाने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया। यह जानकर गर्व होगा कि चंद्रयान-1 ने ही चाँद पर पानी की खोज भी की थी। इसके बाद, साल 2014 में भारत ने मंगलयान को मंगल की सतह पर उतारकर एक नई उपलब्धि हासिल की तो 15 फरवरी 2017 को पीएसएलवी (PSLV) ने एक साथ 104 उपग्रहों को कक्षा में स्थापित कर विश्व रिकॉर्ड बनाया। यह सिलसिला यहीं नहीं रुका, 22 जुलाई 2019 को भारत ने दूसरे चंद्रमिशन चंद्रयान-2 को रवाना किया। लेकिन दुर्भाग्यवश चंद्रयान-2 चंद्रमा की सतह पर उतरने ही वाला था कि लैंडर विक्रम से संपर्क टूट गया और चाँद के दक्षिणी ध्रुव तक की यह यात्रा अधूरी रह गई। फिलहाल हमारी जिज्ञासा का ही परिणाम है कि आज भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में इतनी बड़ी उपलब्धियाँ हासिल कर चुका है। और हर दिन कुछ नया और अनूठा प्रयोग हमारे बैज्ञानिक कर रहे हैं.
महादेवी वर्मा द्वारा रचित ये पंक्तियाँ दुनिया को भारत के जिज्ञासु प्रयासों के बारे में बताती हैं।
“तोड़ दो यह क्षितिज मैं भी देख लूँ उस पार क्या है
जा रहे जिस पंथ से युग कल्प उसका छोर क्या है?”
इसरो (ISRO ) का अब बड़ा मिशन गगनयान है जिसमें अंतरिक्षयात्री को भेजने की योजना है। वर्तमान में अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भी भागीदारी सुनिश्चित की जा रही है जिससे अंतरिक्ष के गहन खोजों में और तेजी लाई जा सके।
आधुनिक हथियारों व उपकरणों से लैस भारतीय सैन्य बल
हम सब इस बात से अवगत हैं की, 1962 के भारत-चीन युद्ध में भारत को हार का सामना करना पड़ा था। विषम परिस्थितियों में भारत की अखंडता की रक्षा करने वाली भारतीय सेना का गठन ब्रिटिश शासन काल में हुआ था। आज़ाद भारत में भी साल 1962 तक भारतीय सेना के पास पर्याप्त और आधुनिक हथियार नहीं थे। नतीजतन उसी दौरान यह अहसास हुआ कि भारतीय सेना को मज़बूत बनाने के लिये आधुनिक हथियार व उपकरण बेहद ज़रूरी हैं।
1962 के बाद भारतीय सैनिकों की संख्या 5, 50,000 से बढ़ाकर 8,25,000 कर दी गई। इसके साथ ही सेना के प्रशिक्षण, संगठन और सिद्धांतों में भी अनेक बदलाव किये गये। यंत्रीकरण के जरिये भारतीय सेना की क्षमता को बढ़ाया गया। वर्तमान में भारतीय सेना के पास राफेल, सुखोई, मिराज, जगुआर, तेजस, मिग-29 व मिग-21 जैसे
ओलंपिक में भारत की झोली में बढ़ी पदकों की संख्या
भारत ने पहली बार 1900 में पेरिस ओलंपिक में भाग लिया था। देश का प्रतिनिधित्व एक एंग्लो इंडियन नॉर्मन प्रिचर्ड ने किया गया था, जो उस समय पेरिस में छुट्टियां मना रहे थे।
इसके कई वर्षों तक भारत देश अपने कहते में केवल एक या दो पदक ही रखता था। 2012 के लंदन ओलंपिक में देश को सबसे ज्यादा 6 पदक मिले। लेकिन अभी तो केवल शुरुआत मात्र ही थी। टोक्यो ओलंपिक 2020 भारत का सबसे सफल साबित हुआ। इसमें भारत ने अपने पुराने रिकॉर्ड को तोड़ते हुए कुल 7 पदक (एक स्वर्ण, दो रजत और चार कांस्य) अपने नाम किये। अब तक खेले गए 24 ओलंपिक में देश को कुल 35 पदक मिले हैं जिनमें से 10 स्वर्ण, 9 रजत और 16 कांस्य पदक शामिल हैं।
विश्व कप की ट्रॉफी पर भी भारत ने जमाया कब्जा
वैसे तो क्रिकेट इंग्लैण्ड का राष्ट्रीय खेल है जी लेकर अंग्रेज यहाँ आये थे और इस खेल को लेकर भारतीओ को निचा भी दिखते थे. लेकिन आज दुनिया भर में भारतीय क्रिकेट टीम का दबदबा कायम है। भारतीय क्रिकेटर्स ने कई बार शानदार पारी खेलकर देश को गौर्वान्वित किया है और देश का नाम क्रिकेट के इतिहास में शान से लेने को अंकित भी करवाया है। साल 1983 में कपिल देव की कप्तानी में भारत ने पहला विश्व कप जीतकर इतिहास रचा था । उसके बाद 2007 में पहले टी-20 विश्व कप को जीता और 2011 में दूसरी बार आईसीसी (ICC )विश्व कप की ट्रॉफी पर भी भारत ने अपने शानदार प्रदर्सन से अपनी जीत दिखायी।
नए स्टार्टअप में भारतीय भी
आज़ादी के कई सालों बाद तक भी भारत में अपना रोजगार शुरू करना किसी राण जितने से काम नहीं था, ब्यापार उस समय तक कुछ गिनती के लोगो के पास ही होता था, इसके कई कारण थे.
१. ब्यापार करने के लिए पूंजी की ब्यवस्था न होना.
२. सरे ब्यापार ट्रेडिशनल ब्यापार की श्रेणी में ही आते थे ( दुकान )
३. ब्यापार पर जाती प्रथा के भी अधीन था. ( जैसे उच्य वर्ग अपने शान की वजह से
ब्यापार नहीं करता था, और वह जमींदारी ही करते थे. निम्नन वर्ग को पुरानी
धरणाओं और भ्रन्तिओं की वजह से ऐसे किसी भी सामाजिक गतिबिधियो में भाग
लेना वर्जित था.
४. ब्यापार का दायरा सिमित होना।
५. उपभोग्ताओ की संख्या सीमित होना।
६. और इन सब में महत्वपूर्ण शिक्षा की कमी होना।
इत्यादि।
स्टार्टअप ब्यापार का ही न्या स्वरुप है, जिसमे ब्यापार करने के पुराने तरीको और सोच को बिलकुल बदल दिया गया है, हालाँकि इस्थिरता और आमदनी को लेकर आज का स्टार्टअप पुराणी ब्यापारिक पढ़ती के आगे अभी तक तो बौना ही साबित हुआ है, परन्तु अगर हम दूसरे पहलु पे नजर डालें तो इसको अबसे बारे योगदान २ क्षेत्रो में साफ नजर आता है. और ये इस वजह से भी देश के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्यों की देश की आर्थिक और सामाजिक बिकाश के लिए लिए ये दोनों पहलु महत्वपूर्ण हैं.
१. देश के लोगो और खास कर नौयुवको की मानसिकता को बदलना।
२. रोजगार के नए औसर पैदा करना।
इसके आलावा भी बहोत कुछ कारण है पर महत्वपूर्ण ये दोनों ही है.
आज भारत में स्टार्टअप की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 के मुताबिक, देश में 61,400 पंजीकृत स्टार्टअप हो चुके हैं। विगत दशक में स्टार्टअप के जरिए 6.6 लाख प्रत्यक्ष और 34 लाख अप्रत्यक्ष रोजगारों का सृजन हुआ है । इतना ही नहीं, हाल ही में भारत में यूनिकॉर्न की संख्या 100 तक पहुँच गई है। सभी को जानकर अच्छा लगेगा कि भारत, अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र बन गया है। साल 2020 में इन स्टार्टअप ने भारतीय अर्थव्यवस्था में 10 अरब अमेरिकी डॉलर का कारोबार किया था, जो 2021 में बढ़कर 24 अरब अमेरिकी डॉलर तक पंहुचा गया है।
कुछ बिवादित फैसलों पर इक्षाशक्ति
एक देश के लिए महत्वपूर्ण फैसला कश्मीर से ३७० और ३५A को निरस्त करना ये दिखता है की आज का भारत गंभीर और बिश्व पटल पर उजागा कश्मीर जैसे मसलो को भी निपुणता से सुलझाने और सम्भाने का दम रखता है.
महिलाओं का देश की उन्नति में महत्वपूर्ण योगदान
आज़ादी के सात दशकों के सफर में देश की महिलाओं के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव आए हैं। पिता की संपत्ति में बेटियों को बेटों के बराबर हक दिलाने वाले कानूनी अधिकार समेत अन्य कई अधिकारों को प्रदान कर महिलाओं को मज़बूत बनाने का काम किया गया है। साथ ही कुछ महत्वपूर्ण और जटिल फैसले जैसे , तीन तलाक जैसे बंधनों से छुटकारा मिलना, उन्हें एक नई आजादी का अनुभव करने जैसा है।
आज देश की महिलाएँ घर की चार-दीवारी से बाहर निकलकर देश के बहुआयामी विकास में अपना महत्वपूर्ण और अमूल्य योगदान दे रही हैं। 50 साल की उम्र में ब्यूटी स्टार्टअप ‘नायका’ (Nykaa) की स्थापना करने वाली फाल्गुनी नायर, , टोक्यो ओलंपिक-2020 में रजत पदक जीतने वाली मीराबाई चानू, महिला फाइटर पायलट भावना कंठ, पूर्व बिदेश मंत्री स्वर्गीय सुषमा स्वराज, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली बछेंद्री पाल, अरुणिमा सिन्हा और अंतरिक्ष की सैर करने वाली कल्पना चावला सहित अनेक ऐसे ढेरो नाम हैं जिन्हे लिखने पर आएं तो कई किताबे इन्ही की गाथाओ और उप्लाभ्दियो से सराबोर हो जाएँ।
इनके अलावा, आज़ादी के 75 सालों में शिक्षा, स्वास्थ्य भारतीय बैंकिग, परिवहन सेवा, इंटरनेट कनेक्टिविटी और मीडिया सहित अन्य कई क्षेत्रों में भी अबिश्वाश्नीय परिवर्तन हुए हैं। एक समय स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव से गुजर रहे भारत का कोरोना जैसी महामारी में औषधियों और वैक्सीन का वैश्विक आपूर्तिकर्ता बनना एक बड़ी उपलब्धि है। ( हालाँकि ये महामारी एक नई प्रकार की थी जो हमारे लिए तो क्या पुरे बिश्व के लिए कई मायनो में एक आइना दिखने का काम किया है) हमें अपनी इन उपलब्धियों पर ज़रूर गर्व करना चाहिये।
निष्कर्ष
भारतीयों की उपलब्धियों की गाथा से तो जाने कितनी इतिहास की किताबे दुनिया भर की लइब्रेरिओ में रखी हुयी हैं. पर इन पर गर्व के साथ साथ एक जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है, की जो अपनी छबि हमने बनाई है दुनिया के पटल पर उससे हम आगे गढ़ने और एक नहीं कीर्तिमान स्थापित करने में सजगता से लगे रहें।
धन्यवाद।