पिछले सप्ताह, 21 जुलाई २०२२ को, द्रौपदी मुर्मू ने भारत के 15वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लिया। भारत के राजनीतिक इतिहास की यह एक महत्वपूर्ण घटना और भारत के संवैधानिक लोकतंत्र को यह गौरवान्वित करने वाला क्षण है। यह निर्वाचन गणतंत्र के विचार की सार्थक अभिव्यक्ति भी है। द्रौपदी मुर्मू के पार्षद बनने से राष्ट्रपति पद तक पहुंचने का सफर साधारण से असाधारण उपलब्धि और संघर्ष की एक प्रेरणाणात्मक कहानी है। द्रौपदी मुर्मू का महामहिम निर्वाचित होना कई मायनों में भारत के लिए महत्वपूर्ण है। झारखंड की पहली महिला राज्यपाल रही मुर्मू भारतीय राजनीति के सर्वोच्च पद पर पहुंचने वाली दूसरी महिला और जनजाति समुदाय से संबंधित प्रथम महिला हैं। मुर्मू उड़ीसा की भी प्रथम व्यक्ति हैं जो राष्ट्रपति निर्वाचित हुआ हो। मुर्मू आजाद भारत में जन्मी प्रथम और सबसे कम उम्र में निर्वाचित पहली महिला राष्ट्रपति भी हुई हैं।
जब से १५वे राष्ट्रपति चुनाव की घोषणा और हुए और उम्मीदवार के तौर पर श्री द्रोपदी मुर्मूर के नाम का प्रस्ताव सत्ता पक्ष से लिया गया तब से उनके राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद भी कई ऐसे प्रश्न हैं जो देशवाशियों के लिए उनके बारे में जानने की जिज्ञासा और राजनीतिक विश्लेषकों के लिए मुद्दा बने हुए हैं।
यदि शक्तियों और कार्यों का विश्लेषण करें तो भारतीय संसदीय व्यवस्था में राष्ट्रपति की स्थिति ज्यादातर प्रतीकात्मक ही है लेकिन संघीय सरकार में राष्ट्रपति के पास नाममात्र की शक्तियों के अतिरिक्त कई महत्वपूर्ण विवेकाधीन शक्तियां भी प्राप्त हैं। राजनीति में प्रतीकों का अपना अलग ही महत्व होता है अगर प्रतीक का प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया जाए तो।
क्या उम्मीद जगती है ?
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भारत में हाशिए पर खड़े समाज के लिए उम्मीद की एक किरण प्रतित होती हैं। इनका राष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचन एक भारत के एक बड़ी आबादी को शीर्ष स्तर पर राजनीतिक प्रतिनिधित्व प्राप्त होने जैसा है और यह उस वंचित समुदाय में राजनीतिक की एक चेतना विकसित करने का कार्य भी करेगा। भारत की कुल जनसंख्या में से आदिवासी समाज की जनसंख्या लगभग 9 प्रतिशत है। द्रौपदी मुर्मू का यह निर्वाचन एक बड़ी आबादी की आकांक्षाओं को एक बिश्वाश प्रदान करने के साथ-साथ आधारभूत जरूरतों से जूझ रहे वंचित समाज की समस्याओं को सतह पर लाने का कार्य भी करेगा। द्रौपदी मुर्मू का निर्वाचन आधी आबादी के लिए भी प्रेरणादायक साबित होगा। इनके निर्वाचन से महिला सशक्तिकरण की अवधारणा को भी न सिर्फ बल मिला मिलेगा बल्कि इस दिशा में किए जा रहे सरे प्रयासों को एक बिश्वशनिये गति भी प्रदान करेगा।
चुनौतियां क्या है ?
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी पर इस बात का खासा दबाव निश्चित तौर पर रहेगा कि वह अपने कार्यकाल में किसी राजनीति पार्टी या विचारधारा विशेष की निष्ठा से प्रभावित हुए बिना, सामाजिक कल्याण और हित के लिए कदम उठाएंगी। भारतीय संसद में 45 सीट और विधानसभाओं में 487 सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। लेकिन जनजाति समुदाय के लोग शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और पोषण के मानकों पर निम्नतर स्थिति पर गुजर बसर कर रहे है। उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण की नीति ने आदिवासी समाज को बहुत ज्यादा प्रभावित किया है। प्राकृतिक संसाधनों का अनुचित दोहन, असुरक्षा का भाव और विस्थापन की इस्थिति इस समाज की एक महत्वपूर्ण समस्या में से है। द्रौपदी मुर्मू जी के समक्ष सबसे महत्वपूर्ण चुनौती जनजातीय समाज के लिए सामाजिक-आर्थिक उत्थान के साथ-साथ उनकी सांस्कृतिक बिरासतो को भी संरक्षित करना है।
इसके साथ ही यह प्रश्न भी विचारणीय है कि, जब शीर्ष स्तर पर एक महिला निर्वाचित हो सकती है तो महिला प्रतिनिधित्व के लिए विधायिका में 33 प्रतिशत सीटों का आरक्षण क्यों नहीं किया जा सकता है ?. आबादी के लिहाज से बिधायिका में महिला प्रतिनिधियों की संख्या बेहद कम है। हाल ही में विश्व आर्थिक मंच ने वर्ष 2022 के लिये अपने वैश्विक लैंगिक अंतराल (Global Gender Gap-GGG) सूचकांक में भारत को 146 देशों में से 135वें स्थान पर जगह दिया है। श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी 22.3 प्रतिशत है। भारत में घरेलू हिंसा की बात करे तो आंकड़े बेहद डराने वाले हैं। इसलिए भारतीय समाज के बश्विक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक आयामों में लैंगिक असमानता को दूर करना बहोत जरुरी हो जाता है. क्यों की हाशिए पर खड़े एक बड़े समाज के लिए सम्मानित और गरिमापूर्ण जीवन सुनिश्चित करना भी द्रौपदी मुर्मू के समक्ष एक बड़ी चुनौती होगी।
निष्कर्ष क्या रहा .
हमारे भारतीय संविधान के प्रावधानों को पूर्णतः अवलोकन के पश्चात राष्ट्रपति के पद को सिर्फ एक रबर स्टांप समझना बड़ा ही कमजोर आकलन है। राष्ट्रपति देश की प्रथम नागरिक होने के साथ-साथ संघीय सरकार एवं रक्षा सेवाओं का प्रमुख भी होता है, और संबिधान के अनुसूची 5 व 6 के अंतर्गत संरक्षित क्षेत्रों का मुख्य प्रशासक भी होता है। द्रौपदी मुर्मू को कठोर और निर्णायक संवैधानिक शख्सियत के रूप में जाना जाता है। उम्मीद है कि वे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को समावेशी बनाने की दिशा में अपना बड़ा योगदान प्रदान करेंगी।